दिल की सुनती हूँ आजकल कभी कभी दिल की सुनती हूं अकेले में कई बार बचपना भी कर लेती हूं कार्टून चैनल लगा कर जोर जोर से हंस लेती हूं बच्चों की तरह ही खुद से ही मस्ती कर लेती हूं आजकल कभी कभी दिल की सुनती हूं वो बचपन के दिन याद आते है भाई बहनों के साथ खूब मस्ती करना लड़ना झगड़ना रूठना फिर मान जाना जब भी वो बचपना याद करती हूं तो अपनी पसंद का संगीत चला कर थोड़ा गोल गोल घूम लेती हूं आजकल कभी कभी दिल की सुनती हूँ हर रोज सबकी पसंद का पकाती हूँ अपनी पसंद तो शायद भूल चुकी हूं बहुत याद आता है जब बारिश में माँ खूब सारे मीठे चीले बनाती थी और ठण्डी में गाजर का हलवा खा कर ही गर्मी आती थी तब अपने लिए मैग्गी बना लेती हूं और वो बचपना फिर से जी लेती हूं आजकल कभी कभी दिल की सुनती हूं मौलिक एवं स्वरचित रीटा मक्कड़